‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित एक अति चर्चित कहानी है | प्रस्तुत कहानी में लेखक ने जाति-पाति और शोषण को मुख्य रूप से आधार बनाकर निर्धन लोगों के जीवन की त्रासदी को व्यक्त किया है | प्रस्तुत कहानी में दिखाया गया है कि किस प्रकार से सूदखोर पूंजीपति असहाय और अशिक्षित ग्रामीण लोगों का शोषण करते थे |
कहानी के छह अनिवार्य तत्व माने जाते हैं – (1) कथानक या कथावस्तु, (2) पात्र एवं चरित्र चित्रण, (3) संवाद व कथोपकथन, (4) देशकाल व वातावरण, (5) उद्देश्य तथा (6) भाषा और भाषा शैली |
उपर्युक्त तत्त्वों के आधार पर ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी की तात्विक समीक्षा इस प्रकार है —
(1) कथानक या कथावस्तु
कथानक कहानी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है | बिना कथानक के कहानी नहीं गढ़ी जा सकती | वास्तव में कथानक उस नक्शे की भांति होता है जिसके आधार पर एक सुंदर इमारत का निर्माण किया जाता है | अत: एक अच्छी कहानी के लिए आवश्यक है कि कहानी का कथानक मौलिक, रोचक व जिज्ञासावर्धक हो |
ओमप्रकाश वाल्मीकि कृत ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी का कथानक अधिक विस्तृत नहीं है | कहानी में 20-25 वर्षों के कालखंड को संक्षेप में दिखाया गया है | कथानक कथानायक सुदीप के बचपन से आरंभ होकर उसकी युवावस्था तक चलता है | कहानी पूर्व-दीप्ति ( फ्लैशबैक ) शैली में रची गई है | कथानायक सुदीप अपनी पहली तनख्वाह अपने हाथ में लिए हुए बड़ा खुश है बस में बैठकर वह अपने गाँव की ओर जाता हुआ स्मरण करता है कि किस तरह उसके पिता ने उसे स्कूल में प्रवेश दिलाया था | वह कक्षा में अच्छे विद्यार्थीयों में गिना जाता था | एक बार 25 का पहाड़ा याद करते हुए उसके पिता ने उसे ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ बताया था क्योंकि गांव के चौधरी ने उससे पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहकर चार महीने का पच्चीस रुपए प्रति माह के हिसाब से ब्याज वसूल किया था | चौधरी ने उसकी इमानदारी से प्रसन्न होकर उसके बीस रुपए माफ कर दिए थे | चौधरी की बात को सच मानकर सुदीप के पिता पच्चीस चौका डेढ़ सौ ही मानते थे और आज तक चौधरी का गुणगान कर रहे थे | यह बात बालक सुदीप के मन में ग्रंथि बन कर बैठ गई थी | वही बालक सुदीप आज शिक्षा प्राप्ति के पश्चात बहुत संघर्ष करके नौकरी प्राप्त कर लेता है और अपने पहले वेतन के रूपए माता-पिता को देकर आशीर्वाद प्राप्त करता है | वह 25-25 रुपयों की चार ढेरिया बनाकर पिताजी को बताता है कि पच्चीस चौका डेढ़ सौ नहीं बल्कि सौ होता है | अचानक सुदीप के पिता की आंखों में बरसों पुरानी घटना जीवंत हो उठी | वह समझ गया कि चौधरी ने उसके साथ धोखा किया था | उस दिन से उसके मन में चौधरी के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई थी |
इस प्रकार ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी का कथानक मौलिक, यथार्थपरक, रोचक तथा गतिशील है | कहानी में आदि, मध्य तथा अंत तीनों स्थितियों को प्रभावशाली ढंग से वर्णित किया गया है | संपूर्ण कहानी में पाठकों के मन में जिज्ञासा बनी रहती है और कहानी का अंत उन्हें सुखद अनुभूति प्रदान करता है |
(2) पात्र एवं चरित्र चित्रण
कहानी में पात्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है | पात्रों के माध्यम से ही कहानी पाठकों तक पहुंचती है | पात्र कहानी को स्वाभाविक बनाते हैं | पात्र जितने अधिक प्रभावशाली ढंग से चित्रित होंगे कहानी उतनी ही प्रभावशाली होगी |
ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ शीर्षक कहानी के दो प्रमुख पात्र हैं – सुदीप और उसका पिता | इन दो पात्रों के अतिरिक्त कहानी में चौधरी साहब, कंडक्टर, दुबला-पतला ग्रामीण, मास्टर फूल सिंह, मास्टर शिव नारायण मिश्रा, सुदीप की मां का उल्लेख भी हुआ है | चौधरी साहब इस कहानी का खल पात्र है जो गांव के अनपढ़ भोले-भाले लोगों का शोषण करता है | सुदीप कहानी का प्रमुख पात्र है | उसे कथानायक कहा जा सकता है | पूरी कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है | उसे एक दलित, संघर्षशील, शिक्षित युवा के रूप में दिखाया गया है | उसका पिता एक भोला-भाला, अनपढ़ व्यक्ति है जो शोषित होने के बावजूद शोषक के प्रति कृतज्ञता भाव रखता है |
इस प्रकार कहानी में सभी पात्रों के चरित्रों का उद्घाटन सफलतापूर्वक किया गया है | सभी पात्र कहानी को गतिशीलता प्रदान करते हुए अंत तक पहुंचाते हैं |
(3) संवाद व कथोपकथन
कहानी में संवादों का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है | हालांकि बिना संवादों के भी कहानी लिखी जा सकती है परंतु संवाद कहानी में नाटकीयता की वृद्धि कर उसे रोचक बनाते हैं, कहानी को गति प्रदान करते हैं तथा पात्रों का चरित्र-चित्रण भी करते हैं |
‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी हालांकि पूर्व-दीप्ति ( फ्लैशबैक ) शैली में लिखी गई है | नायक को एक-एक कर पुरानी यादें आती रहती हैं परंतु फिर भी कहानी को सजीव तथा जीवंत बनाने के लिए लेखक ने यथासंभव संवादों का प्रयोग किया है |
सुदीप और उसके पिता के संवाद कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | ये संवाद न केवल दोनों के चरित्रों का प्रकाशन करते हैं अपितु कहानी के मुख्य उद्देश्य को भी प्रकट करते हैं |
यथा — “नहीं बेट्टे….. पच्चीस चौका सौ नहीं……. पच्चीस चौका डेढ़ सौ…….. ” उन्होंने पूरे आत्मविश्वास से कहा |
सुदीप ने चौंककर पिताजी की ओर देखा | समझाने के लहजे में बोला, “नहीं पिताजी,…. पच्चीस चौका सौ….. यह देखो गणित की किताब में लिखा है |”
“बेट्टे, मुझे किताब क्या दिखावे है | मैं तो हरफ़ बी ना पीछानूँ | मेरे लिखे तो काला अच्छर भैंस बराबर है | फिर भी इतना तो जरूर जानूँ कि पच्चीस चौका डेढ़ सौ होता है |” पिताजी ने सहजता से कहा |
(4) देशकाल व वातावरण
कहानी के संदर्भ में देशकाल एवं वातावरण से अभिप्राय कहानी के स्थान, समय एवं परिवेश से है | वातावरण चित्रण के अंतर्गत स्थान व समय के अनुरूप परंपराओं, रीति-रिवाजों, रहन-सहन खान-पान, तीज त्योहार आदि का वर्णन होता है |
‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी का स्थान ग्रामीण क्षेत्र है तथा समय स्वतंत्रता के बाद का है | कहानी स्वतंत्रता के बाद के सामाजिक शोषण को चित्रित करती है | कहानी में लेखक ने ग्रामीण परिवेश का चित्रण इस प्रकार किया है —
“दोपहर होने को आई थी | सूरज काफी ऊपर चढ़ गया था | उसने तेज-तेज कदम उठाए | लगभग महीने भर बाद गांव लौटा था | जानी पहचानी चिर परिचित गलियों में उसे अपने बचपन से अब तक बिताए पल गुदगुदाने लगे | इससे पहले उसने कभी ऐसा महसूस नहीं किया था | एक अनजाने से आत्मीय सुख से वह भर गया था | अपना गांव, अपने रास्ते, अपने लोग | उसने मन ही मन मुस्कुराकर कीचड़ भरी नाली को लांघा और बस्ती की ओर मुड़ गया | गाँव और बस्ती के बीच एक बड़ा सा जोहड़ था जिसमें जलकुंभी फैले हुए थे |”
इस प्रकार कहानीकार ने भाषा संकेतों और संवादों के माध्यम से ग्रामीण परिवेश की यथार्थ झांकी प्रस्तुत की है | वातावरण और देशकाल की दृष्टि से यह एक सफल कहानी कही जा सकती है |
(5) उद्देश्य
प्रत्येक साहित्यिक रचना का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है | इस दृष्टिकोण से ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी थी कोई अपवाद नहीं है | इस कहानी के माध्यम से लेखक ने स्वर्ण लोगों की थोथी उदारता के आवरण में छिपी शोषण की प्रवृत्ति को उजागर किया है | इसके साथ-साथ कहानीकार ने दलित लोगों की उस मन:स्थिति को भी उजागर किया है जिसके कारण वे अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को अपनी नियति मानकर सहने के लिए विवश हो गए हैं | संक्षिप्तत: ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी का उद्देश्य वर्ण-व्यवस्था की अमानवीयता को उजागर करना तथा मनुष्य को मनुष्य समझने का संदेश देना है |
(6) भाषा और भाषा शैली
‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी की भाषा खड़ी बोली हिंदी है | भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक व बोधगम्य है | कथानक के अनुरूप कहानीकार ने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है | क्योंकि कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है, अतः कहानी में तद्भव और देशज शब्दों की भरमार है | भाषा प्रसाद गुण संपन्न है | प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों का स्वाभाविक प्रयोग किया है |
कहानी पूर्व-दीप्ति ( फ्लैशबैक ) शैली में लिखी गई है | पूर्व-दीप्ति शैली के अनंतर कहानी में संवादात्मक, वर्णनात्मक, मनोविश्लेषणात्मक व भावात्मक शैलियों का भी सुंदर प्रयोग है |
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित कहानी ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ एक उत्कृष्ट कहानी है जो कहानी के तत्वों की कसौटी पर खरी उतरती है |
यह भी देखें
पच्चीस चौका डेढ़ सौ : ( ओमप्रकाश वाल्मीकि )
‘ईदगाह’ ( मुंशी प्रेमचंद ) कहानी की समीक्षा [ ‘Idgah’ ( Munshi Premchand ) Kahani Ki Samiksha ]
‘फैसला’ कहानी की तात्विक समीक्षा
‘ठेस’ कहानी की तात्विक समीक्षा ( ‘Thes’ Kahani ki Tatvik Samiksha )
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